बवासीर खत्म करने के उपाय
जड़ से बवासीर खत्म करने के उपाय-
आधुनिक युग की जीवनशैली में सब लोग शारीरिक काम कम करते है और मानसिक काम अधिक होता है।
- लगातार अधिक देर तक बैठे रहना भी बीमारियो को जन्म देता है , जिसमे से बवासीर एक ऐसा ही रोग है।
- इसके अलावा अनियमित खान-पान और कब्ज की वजह से भी बवासीर हो सकती है। इस बीमारी को अर्श, पाइलस या मूलव्याधि के नाम से भी जाना जाता है।
- इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमजोरी आ जाती है और मल त्याग के वक्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से खून बहने लगता है।
- यह रोग कई लोगो में अनुवांशिक कारणों की वजह से भी पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंच जाता है। यह बीमारी आधुनिक युग की ऐसी व्याधि है,जो गलत आदतो की वजह से जन्म लेती है।
- इस बीमारी में गुदा द्वार पर मस्से हो जाते है। मलत्याग के समय इन मस्सो में असहनीय पीड़ा होती है। यह बहुत अधिक पीड़ादायक रोग है।
- लगातार अधिक देर तक बैठे रहना भी बीमारियो को जन्म देता है , जिसमे से बवासीर एक ऐसा ही रोग है।
- इसके अलावा अनियमित खान-पान और कब्ज की वजह से भी बवासीर हो सकती है। इस बीमारी को अर्श, पाइलस या मूलव्याधि के नाम से भी जाना जाता है।
- इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमजोरी आ जाती है और मल त्याग के वक्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से खून बहने लगता है।
- यह रोग कई लोगो में अनुवांशिक कारणों की वजह से भी पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंच जाता है। यह बीमारी आधुनिक युग की ऐसी व्याधि है,जो गलत आदतो की वजह से जन्म लेती है।
- इस बीमारी में गुदा द्वार पर मस्से हो जाते है। मलत्याग के समय इन मस्सो में असहनीय पीड़ा होती है। यह बहुत अधिक पीड़ादायक रोग है।
बवासीर और उसके प्रकार -
1. अंदरूनी बवासीर-
इसमें मलद्वार के अंदर मस्सा हो जाता है और साथ में कब्ज भी हो तो मलत्याग के समय जोर लगाने पर यह मस्सा छिल जाता है और मलद्वार से खून आने लगते है और असहनीय पीड़ा होती है।इसमें सूजन को छुआ नहीं जा सकता है, लेकिन इसे महसूस किया जा सकता है.2. बाहरी बवासीर- इसमें बाहर की तरफ मस्सा है और उसमे दर्द नही होता। परन्तु मलत्याग के समय मस्से पर रगड़ की वजह से बहुत अधिक खुजली व् पीड़ा होती है।इसमें सूजन को बाहर से महसूस किया जा सकता है।
बवासीर की अवस्थाएँ -
बवासीर रोग शुरू में परेशान नही करता। मगर जैसे जैसे रोग बढ़ता जाता है बवासीर रोग पीड़ादायक और असहनीय होता जाता है। बढ़ते क्रम में बवासीर की कुछ अवस्थाएँ निम्नलिखित है-
खूनी बवासीर -खुनी बवासीर जैसा की नाम से ही पता चलता है इसमें खून निकलता है। इसमें किसी प्रक़ार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले मल में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है।मलत्याग के बाद अपने आप अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।
बादी बवासीर/फिशर -
बादी बवासीर रहने पर कब्ज की वजह से पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, ददॅ, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है,इस रोग को फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें।भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।
कारण -
- लम्बे समय तक शौच को रोकने से बवासीर की समस्या जन्म लेने लगती है।
- जिसको हर रोज कब्ज की समस्या रहती है,उसे भी बवासीर होने का खतरा रहता है।
- भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी से भी बवासीर हो सकती है।
- अधिक मिर्च मसाले ,तले हुए व् जल्दी न पचने वाले भोजन भी इस समस्या को आमंत्रित करते है।
- अधिक दवाइयों का सेवन करने से और लगातार गरम चीजो के सेवन से भी बवासीर हो सकती है।
- गरम पानी से लगातार मलद्वार धोने से भी मस्सा फूल सकता है।
- पीढ़ी दर पीढ़ी और अनुवांशिक कारणों से भी बवासीर हो सकती है।
- रात को देर तक जागने से भी समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- जिनको गुर्दो की बीमारी होती है,उनको भी जल्दी बवासीर हो सकती है।
- गर्भावस्था में भ्रूण का भार बढ़ने पर भी बवासीर हो जाती है
- लगातार खड़े रहने वाला रोजगार जैसे,कंडक्टर ,कुली आदि और लगातार बैठने वाले रोजगार वाले व्यक्तियों में भी यह समस्या ज्यादा पायी जाती है।
- बवासीर के मस्सों को दूर करने के लिए 2 प्याज को भूमल (धीमी आग या राख की आग) में सेंककर छिलका उताकर लुगदी बनाकर मस्सों पर बांधने से मस्से तुरन्त नष्ट हो जाते हैं।
- चाय की पत्तियों को पीसकर मलहम बना लें और इसे गर्म करके मस्सों पर लगायें। इस मलहम को लगाने से मस्से सूखकर गिरने लगते हैं।
- लगभग 60 ग्राम काले तिल खाकर ऊपर से ठंड़ा पानी पीने से बिना खून वाली बवासीर (वादी बवासीर) ठीक हो जाती है। दही के साथ पीने से खूनी बवासीर भी नष्ट हो जाती है।
- मेंहदीं के पत्तों को जल के साथ पीसकर गुदाद्वार पर लगाकर लंगोट बांधे। इससे मस्से सूख कर गिर जाते हैं।
- बैंगन को जला लें। इनकी राख शहद में मिलाकर मरहम बना लें। इसे मस्सों पर लगायें। मस्से सूखकर गिर जायेंगें।
- हरसिंगार के बीजों को छील लें। 10 ग्राम बीज में 3 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीसकर गुदा पर लगाने से बादी बवासीर ठीक होती है।
- छोटी हरड़, पीपल और सहजने की छाल का चूर्ण बनाकर उसी मात्रा में मिश्री मिलाकर खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।
- सांप की केंचुली को जलाकर उसे सरसों के तेल में मिलायें। इस तेल को गुदा पर लगाने से मस्से कटकर गिर जाते हैं।
- कपूर को आठ गुना अरण्डी के गर्म तेल में मिलाकर मलहम बनाकर रखें। पैखाने के बाद मस्सों को धोकर और पौंछकर मस्सों पर मलहम को लगायें। इसको लगाने से दर्द, जलन, चुभन आदि में आराम रहता है तथा मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
- फूली हुई और दर्दनाक बवासीर पर हरी या सूखी भांग 10 ग्राम अलसी, 30 ग्राम की पुल्टिश बनाकर बांधने से दर्द और खुजली मिट जाती है।
- तुलसी के पत्ते का रस निकालकर इसे नीम के तेल में मिलाकर प्रतिदिन सुबह- शाम मस्सों पर लगाएं। मस्सों पर इसको लगाने से मस्से जल्द
ठीक हो जाते हैं। - चुकन्दर खाने व रस पीते रहने से बवासीर के मस्से समाप्त हो जाते हैं।
- बवासीर के मस्सों पर करीब एक महीने तक लगातार पपीते का दूध लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
- भूनी फिटकरी और नीलाथोथा 10-10 ग्राम को पीसकर 80 ग्राम गाय के घी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम मस्सों पर लगायें। इससे मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
- कनेर की जड़ को ठंड़े पानी के साथ पीसकर शौच जाते समय जो मस्से बाहर निकल जाते है उन पर लगाने से वे मिट जाते हैं।
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